साहित्यिक अनुभव
चौदह वर्ष की आयु में मुझे अनाथ कर मेरे पिता जी श्री राजनाथ अवस्थी दिवंगत हो गए। अब मेरे
लिए अग्रज के अतिरिक्त और कोई आश्रय न था। मैं हाई स्कूल और उसके आगे की शिक्षा साहित्यिक वर्ग
की कक्षाओं में प्रवेश लेकर ग्रहण करना चाहता था किन्तु मेरे दुर्भाग्य ने मुझे कृषि वर्ग का छात्र बनने हेतु
विवश कर दिया। मेरा भविष्यमंगल मानों निराशा के अन्धकार में डूब गया। कुछ समय पश्चात् मेरी
पूजनीया माता श्रीमती कौशल्या का भी स्वर्गवास हो गया, उस वज्राघात को मेरा हृदय सह नहीं सका मैं
मूर्छित हो गया मूर्छा से जागा तो कवि बनकर |
बन्धन के गीत निकटस्थ समाज द्वारा निरादृत देखकर मुझे अपार दुःख हुआ। मैंने ब्रह्मनगर
कानपुर के निवासी अपने मित्र श्रीरामनारायण जी श्रमिक से अपनी व्यथा कह डाली। श्रमिक जी क्षण भर
विचार में लीन रहकर मुस्कराते हुए बोले - मैं आपका ऋषि, उत्कृष्ट समालोचक कविहृदय सूरसाहित्य के
मर्मज्ञ अधिकारी विद्वान् D.A.V कालेज के भूतपूर्व हिन्दी . विभागाध्यक्ष एवं वैदिक शोध संस्थान के
निदेशक के दर्शन कराता हूँ | जिनका नाम डाॅo मुंशीराम शर्मा है। वे मुझे सोम जी के पास ले गए। उनके
हृदय में माता की ममता थी पिता का वात्सल्य भाव था | उनकी वाणी में सोम था। उनकी चरण शरण पाकर
मैं धन्य हो गया।
गुरुदेव सोम जी ने मेरे हृदय की पीड़ा सुनी और कह उठे - कोई गीत सुनाओ - मैंने वह
गीत सुनाया जिसकी सृष्टि सबसे पहले हुई थी। गुरु जी आश्चर्यमिश्रित आनन्द में डूबकर बोले - ‘ओह
प्रतिभा है’। मुझे उनका सान्निाध्य सम्बल मिल गया।
उनकी छत्रछाया में रहकर मैंने हिंदी के तीन महाकाव्यों
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1- बलिदान
2- श्रीरामगाथा
3- लोकमंगल - एक खण्डकाव्य - शबरी तथा एक काव्यसंगृह ‘तरंग’
की रचना की।
श्री अयोध्या सिंह सार्वजनिक इंटर कालेज काशीपुर जनपद कानपुर देहात उत्तर प्रदेश में संस्कृत प्रवक्ता पद पर कार्यरत रहते हुए सन २००३ में सेवानिवृत हुए |
संस्कृत भाषा में रचित महाकाव्य वनदेवी वनदेवी पर डॉक्टर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय (केंद्रीय विश्वविद्यालय ,सागर M.P इंडिया ) से शोधार्थी प्रदीप दुबे ने डॉक्टर ऑफ़ फिलासॉफी की उपाधि (संस्कृत में ) सन 2019 में ग्रहण की |
श्री छत्रपति साहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर (उ० प्र०) भारत में मेरे तीन ग्रन्थ ( १. तरङिगनी २. यामनी यास्यति (MA पाठ्यक्रम हेतु ) ३. रात्रिगमिष्यति )
संस्कृत पंचम प्रश्नपत्र के लिए चयनित हुए है |
डी डी यू पी सम्मान लखनऊ 24 दिसंबर 2017 को प्राप्त हुआ |
श्रीरामगाथा (महाकाव्य) में संस्कृत भाषा में सीता जी की स्तुति देखकर - कतिपय विद्वज्जनों ने मुझे
संस्कृत भाषा में साहित्यसृजन-हेतु प्रेरित किया, प्रोत्साहन दिया, तो मैंने गुरुदेव सोमजी से कहा - गुरुदेव!
मैंने कभी किसी विद्यालय में संस्कृत नहीं पढ़ी तो संस्कृत भाषा में रचना कैसे कर सकता हूँ। गुरुदेव अविलम्ब
प्रेरकस्वर में बोल उठे - हाँ कर सकते हो। उनका आशीर्वाद लेकर मैं घर आ गया और रात में निद्रा त्यागकर
विचार में लीन रहा - ‘संस्कृत भाषा’ में रचना-हेतु प्रेरित करने वाले इन विद्वज्जनों ने कुछ तो देखा ही होगा
और फिर गुरुदेव सोम जी ने भी तो प्रोत्साहित किया है। वस्तुतः क्या मुझमें वह क्षमता है।
‘यदि संकल्पबल है, साहस का सम्बल है, श्रम की निरन्तरता है, उत्साह में गति है, तो सफलता
मिलकर रहती है’ यह कहकर मैंने देववाणी संस्कृत में रचना का निश्चय कर लिया।
अभी मैं संस्कृतभाषा में रचना का कार्य प्रारम्भ भी नहीं कर पाया था कि गुरुदेव ‘सोम’ मुझे मेरे
उज्ज्वल भविष्य का आशीर्वाद देकर असार संसार छोड़कर चले गए। मैं पुनः आश्रयहीन हो गया। अब मेरे
समक्ष अग्निपरीक्षा थी। मैंने एक-दो संस्कृत व्याकरण की पुस्तकों पर कुछ खोजती हुई दृष्टि डाली तथा कुछ
छन्दों की रचना की। हिन्दी-संस्थान के तत्कालीन निदेशक कविहृदय श्री विनोद चन्द्र जी पाण्डेय ने इन छन्दों
पर दृष्टिपात कर कहा कि आपकी संस्कृत भाषा में रचना-हेतु पर्याप्त क्षमता है। हिन्दी भाषा में रचनाकारों का
बाहुल्य है। आपको गीर्वाण भारती की सेवा में ही प्रवृत्त रहना चाहिए। उस समय के संस्कृत संस्थान
(संस्कृतभवन) के निदेशक डाॅ. मधुकर ने भी श्री विनोद चन्द्र जी के प्रेरक विचार का आदर किया। कुछ
समय पश्चात् श्री छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर से मैंने शिक्षक के रूप में हिन्दी-संस्कृत
से एम.ए. तथा संस्कृत भाषा में पी.एच-डी. की उपाधि भी ग्रहण कर ली।
संस्कृत सेवा हेतु समर्पण-भाव लेकर मेरे द्वारा
पाँच महाकाव्य:
1- आहुति: स्वातन्त्र्यज्ञे (1998)
2- चिद्विलास: (1998)
3-कारगिलयुद्धम (1999)
4- दामिनी पर्यस्फुरत् (2002)
5- वनदेवी (2011)
चार खण्डकाव्य
1-रात्रिर्गमिष्यति (1994)
2- सूर्यसेनः (2008)
3- अजीजनबाई (2010)
4- विक्रमादित्यदायादाः (2006)
एक गीतिकाव्य:
1-यामिनी यास्यति (2003)
एक मुक्तक काव्य:
1-हिमाद्रिशतकम् (2006)
तीन नाटक
1- विश्वमित्रम्
2- सुदर्शनचरितम् (2001)
3- देवीचन्द्रगुप्तम् (2005)
दो गद्यकृति
1- सीतावनवास: (2002)
2- धरणिबन्ध: (2000)
दो काव्यसंग्रह
1- तरंगिणी (1999)
2-परिमल: (2012)
दो व्याकरण ग्रन्थ
1- भ्वादिगणप्रकाश:
2- धातुम´जरी (धातुज्ञान के लिए बाल साहित्य (2009))
एक आत्मकथा (ग्रन्थ)
जीवनस्मृतिः (2015) इस प्रकार 21 ग्रन्थों की रचना सम्भव हो सकी।
तथा संस्कृत और हिन्दी की समस्त रचनायें जोड़कर अब तक कुल 26 रचनाओं का सृजन मेरी लेखनी
द्वारा हुआ है।
नौ कृतियों
1- वनदेवी
2- सूर्यसेनः
3- अजीजनबाई
4- विक्रमादित्यदायादाः
5- यामिनी यास्यति,
6- हिमाद्रिशतकम्
7- सुदर्शन चरितम्
8- देवीचन्द्रगुप्तम्
9- धरणिबन्ध: में प्रत्येक कृति के मूलरूप के साथ उसका हिन्दी में अनुवाद भी उपलब्ध करा दिया गया है।
प्राप्त उपाधियाँ
1- संस्कृत वाचस्पति
2- कानपुर संस्कृत गौरव
3- साहित्य वाचस्पति
छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर मेरे संस्कृत भाषा में पूर्वरचित चारों महाकाव्यों पर
शोध कार्य करा चुका है, जिसके शोधकर्ता डाॅ. सन्तोष वाजपेयी को विद्यचस्पति (P.H.D) की उपाधि भी
प्राप्त हो चुकी है। अन्य कतिपय ग्रन्थों पर भी शोधकार्य सम्पन्ना कराया जा रहा है। यू.जी.सी. निर्देशित प्रदेश
स्तरीय एकीकृत नवीन पाठ्यक्रम 2012 के अनुसार छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर के बी.
ए. प्रथम वर्ष संस्कृत द्वितीय प्रश्नपत्र में संस्कृत कवि के रूप में मेरे द्वारा प्रणीत ग्रन्थ ‘यामिनी यास्यति’ से
कुछ अंश चयनित किया गया था
महानिदेशक आकाशवाणी (The Director General All India Radio ) द्वारा रविवार 18 जनवरी,
1998 सायं 6ः30 बजे वीरेन्द्र भारती सभागार, हैदराबाद में आयोजित सर्वभाषा कवि सम्मेलन (National Symposium Of Poets 1998 ) में प्रसार भारती के आह्नान पर मैंने संस्कृत कवि के रूप में भाग लिया।
मासिक सुरभारती पत्रम् (कानपुर से प्रकाशित ) नवप्रभातम् (कानपुर से प्रकाशित ) में मेरी संस्कृत
रचनायें छपती रही हैं। गीता मेला (कानपुर) के संस्कृत कार्यक्रमों में कानपुर में आयोजित संस्कृत
कविसम्मेलनों में एवं अन्य कार्यक्रमों में मुझे बुलाया जाता रहा है।
साहित्य अकादमी की पत्रिका ‘संस्कृत-प्रतिभा’, दिल्ली राज्य की पत्रिका ‘संस्कृत मञ्जरी’ एवं उत्तर
प्रदेश संस्कृत संस्थान की (शोध) पत्रिका ‘परिशीलनम्’ में कविता अथवा लेख प्रकाशित किए जा चुके हैं।
मेरा कविहृदय आभारी है साहित्य अकादमी संस्थान का, जिसने महाकाव्य ‘वनदेवी’ को पुरस्कृत
किया, उसे सम्मान दिया। मैं आभारी हूँ
डॉ० रामशंकर अवस्थी
c/68 शताब्दी नगर फेज -1
रतनपुर पनकी 208020 कानपुर
प्रदेश - उत्तर प्रदेश ( भारत )
मोबाइल - 9793509540, 9935241694